अस्मिता मूलक साहित्य का सौंदर्य शास्त्र (ASMITA MOOLAK SAHITYA KA SAUNDRYA SHASTRA)
₹340.00 ₹300.00
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Pages: 425
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Year: 2018, 1st Ed.
- ISBN: 978-93-87441-14-9
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Binding: paper Back
- (Hardbound: Price: Rs.800, selling Price: Rs. 450)
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Language: Hindi
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Publisher: The Marginalised Publication and Central University of Bihar
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Description
किताब के बारे में : सौन्दर्य शास्त्र के बदलते प्रतिमान, दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र, आदिवासी साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र, स्त्री साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र उपखंडों में यह किताब अस्मिता विमर्श के आलोचनात्मक लेखों का संग्रह है.
काव्यशास्त्र विवेचना में भाषा के संबंध में जो नीतियां निर्धारित की गई थीं, इन विमर्शों ने उनके प्रति विद्रोह किया है। इस श्रेणीबद्ध समाज रचना में भाषा को लेकर अनेक भ्रामक कल्पनाएं रूढ़ की गई हैं। शब्दों में भी कुछ शब्दों को अनौचित्यपूर्ण कहा है। दरिद्राक्षर के नाम पर ऐसे शब्दों के प्रयोग को वर्जित किया गया है। नाटक, कविता तथा अन्य साहित्य विधाओं में ग्राम्य शब्दों का, अश्लील शब्दों का, गालियों का प्रयोग न हो, इस प्रकार की हिदायतें दी गई हैं। इन विमर्शों ने अपनी अभिव्यक्ति में ग्राम्य शब्दों का,गालियों का खुलकर प्रयोग किया है। जानबूझकर नहीं। सस्ती लोकप्रियता के लिए नहीं। पाठकों को गुदगुदाने के लिए नहीं। अपितु ऐसे शब्द इनकी अनुभूति के अभिन्न अंग बनकर आए हैं। गालियों को लेकर जो भ्रमपूर्ण धारणाएं हैं, उसका खंडन इन्होंने किया। भाषा विज्ञान की दृष्टि से तो न कोई शब्द श्लील होता है न अश्लील। गालियां वास्तव में प्रखर अनुभूति की अभिव्यक्ति की विवशता के कारण जुबान पर आती हैं। भीतर का क्रोध, दुःख, अवहेलना, अपमान, चिढ़ आदि को व्यक्त करने के लिए भी गालियां प्रयुक्त होती हैं। असहाय और निःशस्त्रा व्यक्ति के ये भाषिक शस्त्र हैं। किसी को अपमानित करने के लिए भी गालियां का प्रयोग होता है। दलित-विमर्श की यह स्थापना कि अब तक सवर्णों ने हमें गालियों द्वारा ही संबोधित किया है। हम जिन गालियों का प्रयोग अपनी भाषा में कर रहे हैं, वह तो सवर्णों की ही देन है। हम तो उनके ही शब्दों को अपनी अभिव्यक्ति द्वारा उन्हें ही लौटा रहे हैं।
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