चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु ग्रंथावली (चार खंड) (Chandrika Prasad Jigyasu Granthawali)
₹1,600.00 ₹1,400.00
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Pages: 1600
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Year: 2017, 1st Ed.
- ISBN: 978-81935616-1-7
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Binding: Paperback
- Hard Bound: (pages: 1600, ISBN: 978-81935616-1-4, price : Rs 3200, selling Price: Rs 2700)
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Language: Hindi
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Publisher: The Marginalised Publication
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Description
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु ग्रंथावली (Chandrika Prasad Jigyasu Granthawali) (चार खंड, मूल्य: 1600, 1600 पृष्ठ )
श्री बोधानंद (1874-1952) स्वामी अछूतानंद (1879-1933) और चन्द्रिकाप्रसाद जिज्ञासु (1889-1974) की त्रयी ने बहुजनों के सामाजिक-सांस्कृतिक-शोषण की पड़ताल की और फिर इसके खिलाफ एक संघर्ष की शुरुआत की। बोधानन्द और अछूतानंद की वैचारिकता को चन्द्रिकाप्रसाद जिज्ञासु ने आगे बढ़ाया और इस पूरे संघर्ष को एक व्यवस्थित गति दी। यह चुनौतीपूर्ण कार्य था। लखनऊ के सआदतगंज में उन्होंने एक प्रेस और प्रकाशन की स्थापना की। प्रकाशन का नाम था बहुजन कल्याण प्रकाशन और प्रेस का नाम समाज सेवा प्रेस। थोड़े आध्यात्मिक विचलन को नजरअंदाज कर दिया जाय तो कुल मिलकर उनका व्यक्तित्व संतनुमा था। उन्होंने स्वयं बोधानंद और अछूतानंद की जीवनियां लिखी और प्रकाशित की। बाबासाहेब का जीवन संघर्ष उनकी लिखी ऐसी महत्वपूर्ण कृति है, जिसे पढ़कर हिंदी भाषी भारत के लोग अम्बेडकर के जीवन और कृतित्व से परिचित हुए। अम्बेडकर की अनेक पुस्तकों के अनुवाद और प्रकाशन का श्रेय जिज्ञासु जी को जाता है। हिंदी भाषी इलाके को उन्होंने अम्बेडकर से परिचित कराया। लेकिन इतना ही कहना शायद उनके महत्त्व को सीमित करना होगा। उन्होंने एक मन्त्र दिया कि दलित और पिछड़ी जातियों को एक साथ आये बिना ब्राह्मणवाद से निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। मार्क्सवाद, गांधीवाद, लोहियावाद और अन्य दूसरे समाजवादी संघर्षों से चुपचाप अलग रहते हुए उन्होंने मनोयोग पूर्वक फुले-अम्बेडकरवाद की जमीन उत्तरभारत में तैयार की। इसी जमीन पर और उनके ही सूत्र यानी बहुजन (दलित-पिछड़ा समूह) के साथ बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में कांशीराम ने एक राजनीतिक संघर्ष की बुनियाद रखी और कांग्रेस व अन्य पार्टियां धराशायी हो गयीं। फिलहाल भाजपा का उभार केवल यह बतलाता है कि सभी प्रकार की वर्चस्ववादी शक्तियां आखिरी लड़ाई के लिए इकट्ठी हो गयी हैं। इसका जवाब भी बहुजनों की ओर से फुले-अम्बेडकरवाद के आधार पर ही मिलेगा। इसलिए आज जिज्ञासु जी कुछ अधिक ही याद आते हैं।
इतने महत्त्व पूर्ण लेखक-विचारक की रचनावली उपलब्ध नहीं थी। उन्हीं की परम्परा के योद्धा लेखक कँवल भारती ने जिज्ञासु जी की रचनावली परिश्रम पूर्वक संपादित कर ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य किया है। यह रचनावली बहुजनों के समग्र संघर्ष को बल तो प्रदान करेगी ही, एक नए आधुनिक भारत का स्वरूप भी निर्धारित करेगी, जो अधिक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण होगा।
–प्रेमकुमार मणि
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