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डरी हुई चिड़िया का मुक़दमा (DARI HUI CHIDIYA KI MUKDAMA)

150.00 120.00

  • Pages: 116
  • Year: 2017, 1st Ed.
  • ISBN: 978-81-935616-0-7
  • Binding: paper Back
  • (Hardbound: Price: Rs.300, selling Price: Rs.220)
  • Language: Hindi
  • Publisher: The Marginalised Publication

Description

डरी हुई चिड़िया का मुकदमा: ‘अयोध्या और मगहर के बीच’ के बाद ‘डरी हुई चिड़िया का मुकदमा’ युवा कवि कर्मानन्द आर्य का दूसरा कविता संग्रह है। इसका शीर्षक इतना आकर्षक और मौजूं है कि संग्रह में संकलित कविताओं के निहितार्थ को समझने का केन्द्र बिन्दु-सा प्रतीत होता है। दो कविता-संग्रहों की इस कविता-यात्रा में ‘डरी हुई चिड़िया का मुकदमा’ कवि के विचार-बोध के परिपक्व होने की गवाही देता है। किसी युवा कवि के दूसरे ही कविता-संग्रह की रचनाएँ इतनी स्तरीय हों कि ढूँढने पर भी कोई कविता उस स्तर से नीचे की न मिले, ऐसा बहुत कम होता है। अपनी बनावट और बुनावट में ये कविताएँ समान स्तर को बराबर ‘मेंटेन’ किये हुए हैं। जो कवि की जागरूकता को उजागर करती हैं। इस बात को लेकर कवि सतत जागरूक है कि कहीं कोई कमजोर कड़ी डरी हुई चिड़िया के मुकदमें को कमजोर न बना दे। ये कविताएँ कवि के विचार-बोध का आईना हैं तो भाव-बोध की प्रतिमा भी, जो कवि की ज्ञानात्मक संवेदना और संवेदनात्मक ज्ञान के रासायनिक घोल में रची-बसी हैं। यह युवा कवि की निजता और मौलिकता की ओर इशारा करती हैं। यह कवि की पहचान का संग्रह साबित होगा। कवि का जीवन संघर्ष ही उसका रचनात्मक संघर्ष बन कर प्रश्फूटित हुआ है। कबीर जैसी प्रश्नाकुलता वह बीज-भाव है जो कवि को अपने समय-समाज के प्रश्नों और चुनौतियों से मुठभेड़ करते हुए बड़े खतरनाक ढंग से कविता के भीतर घुसने का जोखिम भरा साहस पैदा करता है। ‘अंतिम अरण्य’ शीर्षक कविता जनकवि नागार्जुन की ‘मन करता है’ कविता की याद ताजा कर देती है। वंचित समाज के शोषण, दमन और उत्पीड़न के विरूद्ध ये कविताएँ प्रखर प्रतिरोध एवं गहरे इतिहास-बोध की कविताएँ हैं जो मनुष्य को मनुष्य समझने की माँग करती हैं। निःसन्देह यह संग्रह पाठकों के बीच सराहा जायेगा बहस के लिए जमीन तैयार करेगा।

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